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हंस और उल्लू की कहानी पंचतंत्र कथा The Swan and the Owl

यह एक पंचत्र्न्त्र की एक छोटी सी कथा है जो हमें बड़ी महत्वपूर्ण सीख सिखलाती है।

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एक बार की बात है एक घना जंगल था, जिस के बीचो-बीच एक नदी बहती थी। उस नदी के किनारे एक हंस रहता था। एक दिन के उल्लू दूर के जंगल से उड़ते उड़ते नदी के किनारे आ पहुँचा। उसने नदी के किनारे एक पेड़ को अपना घर बना लिया। कुछ समय बाद हंस और उल्लू में दोस्ती हो गई। आगे क्या होता है? जांने इस कहानी को सुन कर।

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एक बार की बात है एक घना जंगल था, जिस के बीचो-बीच एक नदी बहती थी। उस नदी के किनारे एक हंस रहता था। एक दिन के उल्लू दूर के जंगल से उड़ते उड़ते नदी के किनारे आ पहुँचा। उसने नदी के किनारे एक पेड़ को अपना घर बना लिया। कुछ समय बाद हंस और उल्लू में दोस्ती हो गई।
दोनो दिन भर यहाँ वहाँ की बातें करते। साथ ही भोजन भी करते। कुछ महीने बाद एक दिन उल्लू ने हंस से कहा, ” मेरे प्यारे मित्र, अब मुझे यहां बहुत समय हो गया है। मैं अपने घर वापस जाना चाहता हूं। यहां से बहुत दूर जंगल के दूसरे छोर पर एक बरगद का पेड़ है , वहीं मेरा घोंसला है मैं वहाँ पर जा रहा हूं, परंतु यदि तुम्हें अगर मेरी याद आए तो मुझसे ज़रूर आ जाना ।”
हंस ने कहा, ” ठीक है मित्र । कुछ दिनों के बाद हंस को अपने मित्र उल्लू की बहुत याद आयी, तो उसने सोचा की चलो उल्लू से मिलकर आना चाहिए। अगली सुबह वह हंस उड़ता उड़ता जंगल के दूसरे किनारे पहचा, जहाँ उसे बरगद का पेड़ दिखाई दिया। उसका मित्र उल्लू वहीं रहता था ।
हंस दिन भर उड़ रहा था, और उस को उल्लू के घर पहुंचते-पहुंचते उस शाम हो गई थी । हंस बहुत थक गया था । उस ने उल्लू से कहा,, ” मैं बहुत थक गया हूं , मुझे थोड़ी देर आराम करने दो ।”
उल्लू ने कहा, ” ठीक है ,तुम मेरे घोंसले में लेट जाओ। मैं पास वॉक डाल पर बैठ जाता हूं । ”
कुछ देर बाद गाना अंधेरा हो चुका था । लेकिन उल्लू साफ़ देख सकता था ।
शायद तुम्हें पता होगा, की उल्लू को दिन में सही से दिखाई नहीं देता । वह निशाचार है, जिसे अंग्रेज़ी में nocturnal कहा जाता है।
तो ख़ैर। उसी रात कुछ यात्री उस पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए । उन्होंने सोचा यहां रात भर आराम करेंगे, और सुबह फिर चल देंगे । रात होते ही जैसे उल्लू ने जोर जोर से आवाज़ करना शुरू कर दिया। ऊ ऊ ऊ। इस आवाज से यात्रियों को बहुत परेशानी हुई ।
उल्लू का रोना आप शकुन माना जाया है। और उसके रोने से यात्री बहुत ही विचलित हो गए थे। उनमें से एक यात्री ने उल्लू की आवाज़ का स्रोत ढूंढ़ते ढूंढ़ते ऊपर पेड़ पर देखा । उसने अपना धनुष लिया और उस पर एक तीर चढ़ा दिया। उल्लू को मारने के लिए उसने तीर चलाया, पर उल्लू ने देख लिया कि एक तीर उसकी तरफ आ रहा है । वह झट से उड़ गया, और तीर बेचारे हंस को लग गया । तीर लगते ही वह मर गया।
इसीलिए कहते हैं दूसरों के चक्कर में कभी नहीं आना चाहिए । उल्लू चालाक था इसीलिए वह अपनी जान बचा कर भाग गया, और जो बिचारा हंस उससे मिलने आया था उसे अपने जान गवानी पड़ी ।

इस कहानी का एक अलग अंत भी है, याने कि अलग वर्ज़न । दूसरा वर्ज़न इस प्रकार का है:
उल्लू अपने मित्र हंस की लाश को देख कर रोने लगा। उसने सोचा , “हाय, मैंने अपनी मूर्खतापूर्ण हरकत से अपना परम मित्र खो दिया । धिक्कार है मुझ पर ।”
हंस की लाश धरती पर पड़ी थी, और उल्लू को अपने शोक में आसपास की ख़बर ही नहीं रही। उल्लू के रोने की आवाज़ सुन कर एक सियार वहाँ आया। उल्लू को बेसुध होकर रोते देखकर वह सियार उस पर झपटा और उसने उल्लू का काम तमाम कर दिया ।

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This is a story from Panchatantra in Hindi, about two birds- an own and a swan- who become friends. This short story teaches us a powerful lesson that we should be careful in choosing our friends, and stay away from the mean and selfish ones.